जनता की राष्ट्रपति: द्रौपदी मुर्मू


जनता की राष्ट्रपति: द्रौपदी मुर्मू

विश्व के सबसे बड़े एवं पुराने लोकतंत्र के गुणों का बखान करने का सबसे अच्छा उदाहरण और क्या हो सकता है कि उसके आजादी के 75 वर्ष पूरे होने पर वह अपने सर्वोच्च पद पर एक आदिवासी महिला का चुनाव करे।


राष्ट्रपति चुनाव 2022 इस अमृत महोत्सव काल में अपने आप में एक इतिहास लिखने वाला साबित हुआ है। " विविधता में एकता भारत की विशेषता" यह कथन आज भी उतना ही प्रसांगिक है जितना वह पहले हुआ करता था।

21 जून 2022 को देर शाम औपचारिक तौर पर भारत को उस का 15 वां प्रथम नागरिक मिला, तीनों सेनाओं को उसका नया सर्वोच्च कमांडर एवं राष्ट्रपति भवन को उसका नया वारिस।

इस खुशी का दुगुना होना और भी स्वाभाविक है कि समाज के अंतिम पायदान कि कोई महिला इस पद पर विराजमान होगी और उसको सुशोभित करेगी।

25 जुलाई 2022 को जब मुर्मू देश के राष्ट्रपति के रूप में अपना शपथ ग्रहण करेंगी तो उसके साथ वह लाखों आदिवासी भाइयों एवं बहनों की प्रतिनिधि बनकर रायसीना हिल्स स्थित राष्ट्रपति भवन में जाएंगी।

किसी भी समाज का दुख, दर्द, रीति, रिवाज और उनकी संस्कृति का ज्ञान उस वर्ग से आने वाली व्यक्ति से ज्यादा और कोई नहीं जान सकता है। एक विशेष वर्ग जो कि हजारों सालों से वन एवं प्रकृति संरक्षण में लगे हुए हैं उन को मुख्यधारा में लाने का कार्य अब और तेजी से होगा तथा उस को मजबूती मिलेगी।

राष्ट्रपति के रूप में द्रौपदी मुर्मू कैसी साबित होंगी यह तो बाद का विषय प्रतीत होता है लेकिन वह एक कुशल शासक हैं इसमें कोई दो राय नहीं है।

तमाम महत्वपूर्ण फैसले नियुक्तियां एवं अन्य आदेशों पर अंतिम मुहर राष्ट्रपति ही लगाता है, भारत के संविधान के अनुसार समस्त शासकीय कार्यों का निष्पादन भारत के राष्ट्रपति के नाम से ही किया जाता है। राष्ट्रपति को विशेष अवसरों पर स्वविवेक से निर्णय लेने का भी अधिकार प्राप्त है।

मुर्मू झारखंड राज्य के राज्यपाल के रूप में आदिवासियों हकों की घोर उपेक्षा करने वाले विधेयक को विधानसभा में पहले ही वापस कर चुकी हैं। ऐसे में न सिर्फ आदिवासी बल्कि समाज के हर एक व्यक्ति की उम्मीद की किरण के रूप में वह राष्ट्रपति भवन में रहेंगी। 

अपने जीवन में विपरीत एवं कठिन समय में आसानी से पार होने वाली द्रौपदी मुर्मू का जीवन हम सभी के लिए अनुसरण का पात्र है। लोकतंत्र में पक्ष विपक्ष होना स्वाभाविक है परंतु निजी हमला संकुचित मानसिकता का द्योतक है।

द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति के रूप में फैसलों पर हम सब की नजर रहेगी, विशेष तौर पर न्यायिक नियुक्तियां तथा केंद्र सरकार की नीतियों के कसौटी पर वह कितना सही उतरती है यह देखने योग्य बातें हैं।

भारत के मुख्य न्यायमूर्ति जब द्रौपदी मुर्मू को 15वें राष्ट्रपति के रूप में अपने पद का शपथ दिलवा रहे होंगे तब सवा सौ करोड़ भारतीयों का मस्तक गर्व से गौरवान्वित होगा कि काम समय में भारत ने अपने आप को एक सफलतम लोकतंत्र की श्रेणी में लाकर खड़ा कर लिया है।

श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी को ढेरों शुभकामनाएं एवं बधाइयां तथा उनके उज्जवल कार्यकाल के लिए शुभकामनाएं।

जय हिंद!

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